इस्तीफा देकर दोबारा चुनाव लड़ने के लिए विधायकों को अब सौ बार ‌सोचना पड़ेगा
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इस्तीफा देकर दोबारा चुनाव लड़ने के लिए विधायकों को अब सौ बार ‌सोचना पड़ेगा

Think a Hundred Times before Resigning

Think a Hundred Times before Resigning

Think a Hundred Times before Resigning: देश के सात राज्यों की 13 विधानसभा सीटों के उपचुनाव के नतीजों से यह तो तय हो गया है कि अब कम से कम पांच साल तक सत्तारुढ़ दल किसी राज्य की चुनी हुई सरकार को तोड़ नहीं पाएगा। पिछले सप्ताह 13‌  विधानसभा सीटों पर उप चुनाव हुए,‌जिनमें से 10 सीटों पर चुनाव विपक्ष यानी इंडिया गठबंधन ने जीते, दो सीटें पर भारतीय जनता पार्टी ने तथा एक सीट आजाद उम्मीदवार ने जीती है । सत्ता परिवर्तन या सरकार बदलने के उद्देश्य से हिमाचल में तीन निर्दलीय विधायकों के इस्तीफे के कारण रिक्त हुई सीटों पर चुनाव हुए तो परिणाम उन्ही के उलट रहा। इनमें से एक सीट पर ही भारतीय जनता पार्टी चुनाव जीत पाई है जबकि दो सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों ने कब्जा किया। इसी प्रकार लोकसभा के आम चुनाव के साथ हिमाचल प्रदेश में हुई 6 सीटों पर उपचुनाव में चार पर फिर से कांग्रेस के उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है। इन 6 सीटों पर भी सरकार से बगावत करने वाले विधायकों की बर्खास्तगी के कारण उपचुनाव हुए थे, शायद यह केंद्र में भाजपा की बिना बहुमत वाली सरकार के कारण हुआ है। इससे लगता है कि भारतीय जनता पार्टी का उपचुनाव में जीतने का तिलिस्म अब टूट चुका है ।अब यह भी साफ हो गया है कि बीजेपी के कहने पर सरकार तोड़ने के उद्देश्य से कोई भी विधायक इस्तीफा नहीं देगा न ही फिर से चुनाव में  जाने की हिमाकत करेगा। भारतीय राजनीति में सत्ता के दम पर सरकारें तोड़ने, बर्खास्त करने का प्रचलन शुरू से ही रहा है ।इस खेल में सत्ता पक्ष हो या विपक्षी पार्टियां हो कभी ईमानदार नहीं रहे। देश में कांग्रेस पार्टी की सरकार रही हो, जनता पार्टी की रही हो या भारतीय जनता पार्टी की सरकारी रही हो। सभी ने दल बदल के तहत या संविधान की धारा अनुच्छेद-356 का दुरुपयोग करके सरकारें गिराई व बर्खास्त की हैं। 

   समय-समय पर अलग-अलग केंद्र सरकारों ने राज्‍यों में राष्‍ट्रपति शासन  लगाने के लिए अनुच्‍छेद-356 का जमकर दुरुपयोग किया है। कांग्रेस ने 100 से ज्‍यादा बार इस अनुच्‍छेद का इस्‍तेमाल किया है । इनमें 91 बार गैरकाग्रेसी सरकारों को बर्खास्‍त किया गया । वहीं, दूसरे दल या गठबंधन सरकारें भी इसका इस्‍तेमाल करने में पीछे नहीं रही हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी  के 6 साल के शासनकाल में  4 बार राष्‍ट्रपति शासन लगाया गया ।वहीं, आपातकाल  के बाद 23 मार्च 1977 को प्रधानमंत्री बने मोरारजी देसाई  ने 30 अप्रैल 1977 को एकसाथ 8 राज्‍यों की सरकारों को बर्खास्‍त कर राष्‍ट्रपति शासन लगा दिया था।

 संसद और विधानसभा में दल बदल‌ रोकने के लिए वर्ष 1985 में 52वें संविधान संशोधन के माध्यम से देश में ‘दल-बदल विरोधी कानून’ पारित किया गया। साथ ही संविधान की दसवीं अनुसूची, जिसमें दल-बदल विरोधी कानून शामिल है, को संशोधन के माध्यम से भारतीय संविधान में जोड़ा गया। इस कानून का मुख्य उद्देश्य भारतीय राजनीति में ‘दल-बदल’ के मामलों पर अंकुश लगाना था ताकि कोई भी राजनीतिक पार्टी विधायकों व सांसदों से दल बदल करवा कर सरकार ना तोड़ सके। अब इस कानून के अनुसार किसी भी राजनीतिक दल के दो तिहाई सांसद या विधायक ही दूसरी पार्टी में जा सकते हैं।

वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में भी कई बार धारा 356 का प्रयोग किया गया। इतना ही नहीं देश में कई चुनी हुई सरकारों को गिराकर अपनी पार्टी की सरकार बनाई गई। विधायकों पर दल बदल कानून लागू न हो इस वजह से कई राज्यों में विधायकों के इस्तीफे दिलवाकर उपचुनाव करवाए गए। भारतीय जनता पार्टी की यह एक्सरसाइज  कर्नाटक और मध्य प्रदेश में सफल रही, लेकिन राजस्थान और हिमाचल प्रदेश में सफल नहीं हो पाई।

हाल ही में 10 जुलाई को ‌सात राज्यों की जिन 13 विधानसभा सीटों के उपचुनाव कराए गए थे। ये सीटें विभिन्न दलों के मौजूदा विधायकों की मृत्यु या इस्तीफे के कारण रिक्त हुई थीं। इनमें से 10 सीट में भारतीय जनता पार्टी या इनकी समर्थित पार्टियों के पास थी ।

 देश के कई राज्यों में सरकार बनाने के लिए बीजेपी के जोड़-तोड़ करने की रणनीति का भी अहम योगदान‌ रहा है। यही वजह है कि बीजेपी ने गोवा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा और बिहार में अपनी‌ पार्टी की सरकार बनाई। इससे पहले राजस्थान में और अब कुछ दिन पहले ही हिमाचल प्रदेश में विधायकों को तोड़कर अपनी पार्टी की सरकार बनाने का प्रयास असफल रह चुका है। हिमाचल प्रदेश में तो हाल ही में अभी तीन विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव इसी वजह से हुए थे। यह तीनों विधायक जो आजाद थे उन्हें कांग्रेस की सरकार गिराने के मकसद से इस्तीफा दिलवाकर भारतीय जनता पार्टी से चुनाव लड़वाया। इनमें से दो विधायकों को हार का मुंह देखना पड़ा। उत्तराखंड में तो जिन दो सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार जीते हैं वहां पहले भारतीय जनता पार्टी के विधायक रहे हैं। इसी तरह से पश्चिम बंगाल में चार सीटों पर हुए उपचुनाव में सभी टीएमसी के उम्मीदवार जीते हैं ।पहले चार में से  तीन विधायक भारतीय जनता पार्टी के रहे हैं। कुल मिलाकर गत सप्ताह तेरह विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी को गहरा धक्का लगा है। अब सरकार को तोड़फोड़ करने के उद्देश्य से विधायकी का पद छोड़ने वाले और भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की जीत का तिलिस्म टूटा है। ऐसे में यह  आगामी पांच वर्ष तक किसी भी राज्य की वर्तमान सरकार को तोड़ने के मकसद से इस्तीफा देकर फिर से चुनाव लड़ने पर वे क्या वे दोबारा जीत पाएंगे। यह लाख टके का सवाल है। अब किसी भी पार्टी के विधायक को इस्तीफा देकर फिर से चुनाव में जाने के लिए  सौ बार सोचना पड़ सकता है।